तुम्हारी चेतना हूँ
तुम्हारी चेतना हूँ


अहसास जगे जब कोई मोहक दिल की
रौशन महफ़िल में
छू लेना मुझे-तुम ऐसे
जैसे कोई शबनम की बूँद छूती है
किसी फूल दल को..!
स्पर्श के स्पंदन में चेतना का संचार हो
जब छू लेना मेरे मन को
जैसे पास-पास रखे
दो गमलों के पौधों की टहनियां
जरा सी बयार से
छू जाती है आपस में झुलती..!
प्यास जगे जब जलते दिल को
बिखर जाना मुझ पर यूँ
जैसे सहरा की तप्त रेत पे
अचानक से गिरती है
पहली बारिश की बूँदें तपाक सी..!
तलब लगे जब रूह को मिलन की
मचल कर आगोश में लेना मुझको
एसे जैसे किसी नवजात शिशु का
पहला आह्लादित स्पर्श
छू जाता है
ऊँगलियों के पोरों को..!
नम हो जाए कभी दर्द से बोझिल नैना
बस याद कर लेना मुझको
शीत परत संदल सी बनकर लेपन सी
पलकों पर बिखर जाऊँगी
छू जाती
जैसे कोई नज़्म रूह को..!
तान लगे जब ज़िंदगी की सूनी कभी बेसूरी दिल की
एक धड़कन पर कोई नाम मेरा लिख देना
बजती रहूँगी हर पल हरदम
पायल सी साँसों में।