तुम्हारा कमज़ोर कांधा
तुम्हारा कमज़ोर कांधा
तुम्हारे हिस्से की मुहब्बत,
उस रात ही पूरी खर्च कर दी तुमने।
हमारे हिस्से की उलफत,
कमबख्त! खत्म ही नहीं होती।
दिनोदिन यूं गहरी हो रही है जैसे लौंग में सिंकी,
हिना वाली हथेली;
जितनी तपिश झेली, बेलौस उतनी ही रंगत खिली।
क्या कोई साज़िश है तुम्हारी
मेरे दिल के जज़्बातों से ?
के मेहमा बनकर आओगे,
और ख़ुद मुझी को बेदखल कर,
काबिज़ करोगे मुझ पर हक़ सारे ?
फिर छोड़ कर चल जाओगे?
इलज़ाम नहीं, शिक़ायत ही कह लो इसे;
कि तुम्हे चैन सौगात देकर हम बेकरार रहे,
इश्क़ की ऐसी रवायत तो पहले बताई न थी तुमने!
शिकवे मिटाना चाहते हो ?
तुम्हारी आंखों में पढ़ा है मैंने।
फ़िर अपने दाएं कांधे का सहारा दो और इक बार।
इस बार मत कहना ' कमज़ोर है '।कम कूवत है, तभी तो मेरा हाल ठीक समझेगा !
वरना बाईं तरफ़ तो तुम्हारे भी
दिल ही धड़कता है।
इतने अश्कों में जो ज़रा भी नम न हुआ,
मेरी आहों में भला वो क्या पिघलेगा?
इलज़ाम नहीं, शिक़ायत ही कह लो इसे;
इश्क़ की ऐसी रवायत तो पहले बताई न थी तुमने !
इश्क़ की ऐसी रवायत तो पहले बताई न थी तुमने !