Sakshi Vaishampayan

Abstract Inspirational

4  

Sakshi Vaishampayan

Abstract Inspirational

वो अक्सर खुश रहती थी

वो अक्सर खुश रहती थी

1 min
246


वो अक्सर खुश रहती थी।दिखती जब भी बिल्डिंग में,कभी हाथों में सामान होता,कभी ऑनलाइन कोई काम होता,फोन पे कुछ बंदोबस्त करती,कभी यूं ही व्यस्त रहती, वो अक्सर खुश रहती थी।

वो अक्सर खुश रहती थी।

सुबह की चाय ज़रा फुरसत से पी,या दो मिनिट बाहर खिड़की से निहारा,सुकून मिला, तसल्ली की,फिर हर कोना बुहारा, संवारा।आंखों से मुस्कुराती, या कभी पूरी हंसती,वो अक्सर खुश रहती थी।

वो अक्सर खुश रहती थी।अपने हिस्से के समय से,सभी के लिए वक्त निकालती।जब सिर्फ अपने लिए कुछ पल चुराती,तो जैसे बोझ सा कुछ मन पर पाती।अपने दायरे देहलीज़ खुद तय करती, बंधती,

वो अक्सर खुश रहती थी।वो  अक्सर खुश रहती थी।तनी भवें, उदास शक्लें, माथे पे शिकन, परेशान करती,

कर्तव्य अधिकार सब समझती,पर घर और हक़ में घर ही चुनती।ख़ुद से वायदे भी करती, सपने फिर भी बुनती,घड़ी पे नज़र जमाए, पटरी पे रेल सी बढ़ती,वो अक्सर खुश रहती थी।वो अक्सर खुश रहती थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract