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Jyoti Agnihotri

Romance

4.6  

Jyoti Agnihotri

Romance

तुम

तुम

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मेरा नहीं ,

वर्चस्व हो तुम,

खुद ही खुद में,

अस्त हो तुम।


माना की अभयस्त,

हो तुम,

किन्तु नहीं,

सिद्धहस्त हो तुम,

अपने ही मद में,

मदमस्त हो तुम।


स्वार्थ हो,

निहितार्थ हो,

अब तुम ही,

मेरा हितार्थ हो।


यह प्रेम नहीं अब भार होगा,

यहाँ नहीं अब अभिसार होगा।

ये कैसे अब बोल दूँ मैं,

तुम,

हृदय हो मेरा,

तुम्हें कैसे छोड़ दूँ मैं ।


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