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Shipra Verma

Romance

3  

Shipra Verma

Romance

तुम पहले से नहीं रहे

तुम पहले से नहीं रहे

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तुम्हारे किनारों से टकरा कर

दूर छिटकने की परिणति का

संशय लिए हुए मन में, फिर भी

अपना सारा वजूद समेटे हुए मैं

तेरे पास आ गयी थी निर्विकार।


तुम अपने अनंत विस्तार पसारे,

मुझे अपने में समेट लेने से क्यों

झिझके, सकुचाये मुझे मालूम नहीं,

क्या मेरे साथ असहजता हुई तुम्हें

क्यों नहीं आलिंगन में लिया मुझे?


अब दूर थपेडों ने किया तुझसे मुझे

सुना है तुम्हें भी अब थोड़ी ग्लानि है,

तुम शायद मुझे आवाज़ भी दे रहे हो

पर, लौटने के लायक अब नहीं रही मैं,

सुनो जी, तुम भी अब पहले से नहीं रहे।



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