तुम मोहब्बत की दुकान थे
तुम मोहब्बत की दुकान थे
सोचना पड़ता है
मुझे बार बार
यकीन दिलाना खुद को
अच्छा प्रतीत नहीं होता कि
तुम अब इस दुनिया में नहीं हो
मेरा दिल भारी है
आंख है नम
होंठ सूखे हुए और
तन से कहीं बाहर को निकलता
मन
किसको दोष दूं
तुम्हारे न होने का
भगवान को निर्दयी कहूं या
प्रकृति को धिक्कारूं या
खुद को कोसूं
कुछ भी कर लूं पर
तुम्हें वापिस इस जहां में
लौटाकर कहां से लाऊं
एक झलक भी
कहीं से
झिलमिलाती हुई तुम्हारी
देखने को नहीं मिलती
इतनी भी जल्दी क्या थी
यूं बिछड़ने की
दिलों के बीच कभी कोई
फासला ही नहीं था और अब
यह दूरियां हैं कि
सिमटने का नाम ही नहीं ले रही
पुकारती रहती हूं मैं तुम्हारा
नाम जब तब लेकिन
तुम तक तो मेरी आवाज शायद
पहुंचती ही नहीं
तुम न मिलो
तुम जैसा ही कोई दिख जाये
दिल मेरा यह चाह रहा कि
मुझे नजरों का धोखा हो जाये
किसी की आवाज तुमसे
मिलती हो तो
कानों में पड़ जाये
तुम जैसा सलीका
तुम जैसी सादगी
कहीं थोड़ी भी किसी में
दिख जाये लेकिन
दिल जो चाह रहा
वह बिल्कुल हो नहीं पा रहा
तुमने हमेशा मेरा कितना
ख्याल रखा
कभी दिल नहीं तोड़ा मेरा
और
यह दुनिया है ना
जो जब तुम थे तो
मोम के माफिक लगती थी
सच कहूं
अब लगती है
पत्थर की
जल्लाद
फौलाद के बने हैं सब
किसी का लगता है
दिल ही नहीं धड़कता
तुम कैसे बने रहे
उम्र भर
मोम के और
सरल हृदय
सोचकर भी हैरानी होती है
तुम सच में
महान थे
एक अच्छे इंसान
एक मोहब्बत की दुकान
तुम सा तो कोई
इस संसार में दूसरा नहीं
होगा
मेरे लिए तो तुम थे
खुदा से बढ़कर
तुमसे जो था
मेरा रूह का रिश्ता
अब शायद वह किसी
और से न कभी
कायम होगा।
