तुम मेरी तकदीर
तुम मेरी तकदीर
तुम कभी फूलों सी तो कभी पंखुड़ी गुलाब की लगती हो,
आईना भी तुम्हें देख शर्माता जब तुम सजती संवरती हो,
तुम्हें देखने भर से दिल में मेरे एक हलचल सी होती है,
कदमों में तेरे फूलों को बिछा दूँ जिस राह तुम चलती हो,
तुम्हारे आंखों का काजल लगता जैसे हमसे कुछ कहता,
कभी अप्सरा तो कभी हमें तुम क़यामत सी लगती हो,
रात और दिन तुम्हारे ही ख्यालों में बस डूबा रहता हूँ,
तुम कहीं भी हो पर हमेशा मेरे हर ख्वाबों में रहती हो,
तुम्हारी याद में जाने कितने ही गजलों से पन्ने भर दिए,
उस हर ग़ज़ल में तुम मुझे मेरी तकदीर सी लगती हो,

