तुम को तुम से चुरा लूँ
तुम को तुम से चुरा लूँ


फलक से सितारें या बहारों के रंग चुरा लूँ
रंग केसरिया सी सुरमयी एक शाम चुरा लूँ।
लिखनी है गज़ल तुम्हारे कुछ लहजे चुरा लूँ,
या तुम्हारी अदाओं से उधार कलाम चुरा लूँ।
आहिस्ता बलखाती चाल से नज़ाकत चुरा लूँ,
है दिल ए तिश्नगी आँखों से तेरी जाम चुरा लूँ।
गर सुखन ए दिल को समझे तू करार चुरा लूँ,
हो करम तेरी नर्म पलकों से सलाम चुरा लूँ।
जवाँ धड़कन से दिल चुराने का अंदाज़ चुरा लूँ,
तौबा रोशन पुतलीओं से चमकती धूप चुरा लूँ।
हो इजाज़त सनम की सांसों से महक चुरा लूँ,
थोड़ा करीब आओ गेसूओं से खुश्बू चुरा लूँ।
लबों की नमी या बादामी रुखसार से रंग चुरा लूँ,
कायनात में कोई तुम सा कहाँ तुम को ही चुरा लूँ।
बनाकर तुम्हें अपना ख़ुदा थोड़ी इबादत चुरा लूँ,
पनाह मिल जाये तेरी आगोश से सुकून चुरा लूँ।
बोल तुम्हारे नूर ए ख़ुदा की आयात है चुरा लूँ,
बंदगी ए मोहब्बत हो कुबूल मेरी सजदा चुरा लूँ॥