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Manoj Kumar

Romance

4  

Manoj Kumar

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तुम कितनी अच्छी हो..

तुम कितनी अच्छी हो..

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सुबह की किरणों के जैसी, तुम लगती हो।

वीणा की सुर कि तरह, तुम कहती हो।

कमल के सौंदर्य की तरह, तुम "बाला।

गुलाबी आंखें है तुम्हारी"तुम्हें जाम कहे या हाला।

कभी शरारत करती हो तुम मुझसे, तो तुम बच्ची लगती हो।

तुम कितनी.......................।


चंचल स्वभाव है तुम्हारा, घुंघराले बाल होंठो पर।

संवारती उसे अपने हाथो से मुस्काकर।

कभी छन - छन पायल पांव में बजाती।

कभी मुखड़ा शर्माकर ओढ़नी से ढक लेती।

कभी छिपकर देखती हो तो, लगती कली से भी कच्ची हो।

तुम कितनी.......................।


सरकती है तुम्हारी चुनर भू- धरा पर।

प्यार से उठाती उसे झुक- झुककर।

मधुकर भी आकर गूंजे तुम्हारे कानों में, तुमसे वो भी प्यार करे।

खूबसूरती की चाहत उनको भी है, वो हां- हां भरे।

मनोज कुमार के तुम होकर रहोगी, उनके दिल से सच्ची हो।

तुम कितनी.........................।।


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