कभी सोने के नसीब में
कभी सोने के नसीब में
कभी सोने के नसीब में
कभी सोने के नसीब में
चाँदी के पायल पहनती थी
उसका नसीब ऐसे ले डूबा
कि वो आज काला धागा बांधती हैं
सब्र है उस मोहब्बत को
जिसने अंधेरें को रास्ता बनाया
मेरे खातिर दिल को डुबोया
कोई ऐसे भरी दोपहरिया में रेत पे चलता है
थोड़ा जीने के लिए झलक
बस मुझमें होने के लिए ललक
है उस दीवानी के लिए
जो आज भी खुश है
सिर्फ़ मेरे लिए
आज भी सुनाई देती है
उसकी धड़कनों की आवाजें
जो जंगल के पतझड़ में
जो टकराकर मुझे सच्ची बनकर सुनाई देती है
ये भी अजीब नजरें है मेरे रब में
जो वो दूर से ही खबरें भेजते रहते हैं
और मुझे आहिस्ता बताते रहते हैं
कोई लापता हैं, ये मुझे नहीं पता हैं
लेकिन ये बेशक पता है
कि वो आज मुझसे ज़रूर खफा है