तुम जाना नहीं...
तुम जाना नहीं...
तुम जाना नहीं, कभी नहीं।
मैं हाथ छोड़ दूँ, तब भी नहीं।
तेरे पास न रहूँ, तब भी नहीं।
तुझे प्यार न करूँ, तब भी नहीं।
तेरा नाम न लूँ, तब भी नहीं।
तुम जाना नहीं , कभी नहीं।
तू हर पल में मेरे साथ-साथ रहता है,
मेरे लम्हों में, मेरे किस्सों में,
मेरी यादों, मेरी गज़लों में,
मेरी आँखों में, मेरी साँसों में,
कभी गर साँस रुक जाए, तब भी नहीं।
तुम जाना नहीं, कभी नहीं।
तेरा रहूँ, या तेरे ख़िलाफ़, तब भी नहीं।
मैं रहूँ या न रहूँ, तब भी नहीं।
उजड़ू या बसूं, तब भी नहीं।
जल जाऊँ या बुझूं, तब भी नहीं।
तुम जाना नहीं, कभी नहीं।
तेरे किस्से सजाकर रखता हूँ,
यादों में अपनी, तेरी अटखेलियां
बसाकर रखता हूँ,
नीदों में अपनी हर लम्हा तुझ में
खोने का इंतज़ार रहता है,
तेरे सपने सजा कर रखता हूँ,
पलकों पे अपनी,
कभी गर आँख बंद हो जाए, तब भी नहीं।
तुम जाना नहीं, कभी नहीं।