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Neeraj pal

Abstract Others

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Neeraj pal

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तुम बिन।

तुम बिन।

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गुरुवर "तुम बिन" अब कौन हमारा।।


उचित-अनुचित का भेद न जाना, तड़प रहा मन मेरा।

बुद्धि-विवेक का मर्म न समझा, भ्रमित हुआ जग सारा।।


अज्ञान कारज व्याधि सब उपजी, सूझे न कोई किनारा।

काम-क्रोध ने ऐसा जकड़ा, असत्य का दामन पकड़ा।।


सत्य का व्यवहार बन न पाता, विकारों ने डाका डारा।

मनुष्यता का पाठ न सीखा, किस्मत से भी हारा।।


प्रेम की भाषा समझ में न आई, कुभाव ने ही घेरा।

मलिन आवरण हृदय अब मेरा, किस विधि होय सवेरा।।


सबरी नवधा-भक्ति तब जानी, जब गुरु ने दिया सहारा।

गुरु सत्संग की महिमा निराली, पल भर में ही तारा।।


मोह-ममता से घिरा जो प्राणी, भरा जिन लोभ अपारा।

विवेक जागृत बिन गुरु न होता, ईश्वर अंश रूप है धारा।।


ज्ञान-चक्षु से अंतर्मन धोते, करते निर्मल हृदय तुम्हारा।

"नीरज" आस लगाए बैठा, गुरुवर "तुम बिन" अब कौन हमारा।।


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