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सोनी गुप्ता

Abstract Romance

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सोनी गुप्ता

Abstract Romance

तुम बिन मजा क्या जीने में

तुम बिन मजा क्या जीने में

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अब किसी से क्या कहें, दर्द दिया तुमने बहुत मेरे सीने में

तुम बिन रहना मुश्किल हो गया, अब क्या मजा है जीने में

इस जिंदगी में अब सुख और दुख तो, यूँ गहराता जा रहा है

दर्द भी बेदर्द जब बन जाता, और हम खड़े अकेले सफीने में!


जहाँ जहाँ बसी थी तुम्हारी यादें, वहाँ हम गए तुम्हें ढूंढने, 

तुम बिन सफर बहुत कठिन, तरबदर हो गए हम पसीने में, 

यह वक्त बहुत कठिन है तुम बिन संभलना हमें आता नहीं, 

उपवन भी खाली पतझड़ सा लगता हमें सावन के महीने में! 


समय का चक्र चलता जा रहा है, मैं वहीं अभी तक खड़ा हूँ, 

इतनी भीड़ में भी अकेला अब तो सूनापन लगता मुझे जीने में, 

राह न दिखती भय के इस विष को त्याग कर अब कहाँ जाएं, 

पीर की गहराई में कितना निष्ठुर बादल आग लगाता चौमासे में! 


पगडंडी -पगडंडी मैं फिरा बहुत, मिले बहुत ही टेढे़ - मेढ़े रास्ते,

कोई ना दिखा उन रास्तों पर, सुनसान पड़ी सड़कें न कोई कोने में, 

हर त्योहारों का रूखापन, अब मेरे अंतर मन को खलता जाता है, 

स्नेह चुक रहा हर संबंधों का, और अब ना मजा आता जीने में! 


जीवन का ताना-बाना सब उलझा पड़ा, वीरानों ने ऐसा मुझे घेरा, 

खामोशियां चितकारती हुई कहती, अब ना दर्द बचा तेरे सीने में, 

आज मेरी ही निर्बलताओं ने, मुझे इन दुविधा में कुछ ऐसा डाला,  

उन गलियों में भी सुकून ना मिलता, ना अब मन करता जीने में! 


वक्त वो खुशियों वाला गुजर गया, नाम और पहचान बदल गई, 

जहाँ कभी तुम्हें देखते थे, आज आंखें नहीं देखती उन आईने में, 

पक्षियों की चहक उपवन की महक, सब फीकी सी मुझे लगती है, 

झुक गई सब डालियाँ यहाँ, अब तो न दर्द बचा सही मायने में! 



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