तुम बिन अधूरी
तुम बिन अधूरी
मनभावन रचना, सरल सरिला
चंचल चित वन, रूप सजीला
तुम बिन मेरा जीवन, न अधूरा,
तुम हो मेरे मैं तुम्हारी प्रिया।
जब हर शाम तुम मेरे आगोश में आती हो
मचल ते हुए मेरे हाथों में इतराती हो
थोडा मटकती हो थोडा इतराती हो
पर कुछ समय बाद तुम मुझ में खो जाती हो।
तुमसे भला मुझें कौन जान पाया है
तुमने मेरा हर पल साथ निभाया है
एक दूजे के लिये ही बने हैं हम
मेरे जिस्मों जहाँ पर तुम्हारा ही प्रतिबिंब छाया है।
मेरे बेचैनियों को हमेशा तुमने समझा है
मेरे दुख म, खुशी, म, तकलीफ़ो को हमेशा तुमने सुना है
म, भावनाओं को एक सजीव चित्रण दे खाली पन्नों में उतारा है
मैनें और तुमने जिंदगी के हर मोड़ को संग -संग जिया है।
ए कलम तुम शांत हो, सरल हो बहुत ही मनमोहक हो
तुम म, जिंदगी का अभिन्न अंग हो
तुम बीन जीवन की कल्पना अधूरी
मैं शरीर तुम आत्मा हो म।
अब जब दोबारा से तुम म, जिंदगी में आयी हो
म, जिन्दगी को फिर कविताओं से मिलाई हो
क्या खूब मिलन है हमारा
न जहाँ का डर, ना समय को देखना
जब भी मिलना हो तो बस तुम्हारा हाथ पकड़ना
और खो जाना
एक दूसरे में मंत्रमुग्ध हो जाना है
प्यार भरा माहौल बना अपने दिल का हाल बयाँ करना
बस खो जाना है, बस खो जाना है, बस खो जाना है।