तुम और मैं.....
तुम और मैं.....
तुम हिसाब करते रहे ,
मुझसे अलग होने के बाद
अपनी हर बात का ,
कब कितनी मुझसे बातें की
कब कितने हमने लम्हे गुजारे
कितने सावाल ज़ो मैने पूछे
कितने जवाब जो थे तुम्हारे
बस गिनते रहे ,
और मैं ,
कभी गिन नहीं पाया ,हर बार
धुन्दली रातें ,ज़ो साथ काटी
ओस में थी कुछ अश्कों में
कितनी बार मैं कितना रोया
कुछ दिल से ,कुछ आँखो में
कितनी राह ,तुम्हारी देखी
कुछ लम्हों ,कुछ सदियों में ...
कितनी बार तुमको ढूंड़ा
हर ख्वाब में और हर अपनो में,
मैं तो ये कभी गिन नही पाया
बिखरा कितने हिस्सों में ..
मैं हार गया फिर से
तुम्हारे हिसाब से ,
तुमसे ,या शायद
तुमको ,
फिर से ...