चलो फिर से ऐसा देश बनाते हैँ
चलो फिर से ऐसा देश बनाते हैँ
चलो फिर से ऐसा देश बनाते हैं
जहां रंग चेहरों के जुदा हों ,
मगर उनमें ख्वाब एक से रहते होँ
जहां दीवारें तो कई हो मगर
हर घर में खिड़कियां खुलती हों ,
जहां नदियों के पानी में
फिर कोई भेद न कर दे मिट्टी का ..
घर से किसी के आयें मगर ,
खुशबू एक ही हो रोटी की
चलो एक ऐसा देश बनाते हैं
जहाँ कितने भी रंग मिल जाए ,
मगर बस तीन ही रंग हो धाती का ...
चलो फिर से ये देश बनाते हैं ..
चलो ...अपना भारत फिर से बनाते हैं .
