एक दिन ..
एक दिन ..
कुछ जमी हुई सी सांसें
और तुम्हारे एहसास की गर्माहट
कुछ तो है, जो पिघला नहीं है
कुछ तो है, जो गया नहीं है
तुम्हारे जाने के बाद भी,
कहीं अटका है,
कांच के शीशों से झांकता
गुलमोहार की शाखों में लिपटा
तुम्हारा छोड़ा हुआ..
मेज की दराज़ में
किसी काग़ज़ पे
बिखरी हुई स्याही सा
जमा हुआ।
तुम्हारे साथ गुजारा
एक पूरा दिन
अब भी रखा है।