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Amit Srivastava

Others

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Amit Srivastava

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यथार्थ...

यथार्थ...

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पर्वत कितने भी करीब हो जाए 

क्षितिज के, वो बस लौट आता है ,

धरा की गोद में , हर दिवस 

सूरज का प्रकाश लिये ,

उतर आता है ,

पगडंडियों से नीचे ,साँझ ढ़ले 

मिट्टी की क्यारियों में, खुद को सोखने 

बादलों के रथ को छोड़कर ,

उसे पता है ,

ऊंचाइयां सदैव स्थिर नहीं रहतीं।


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