तुम आना!
तुम आना!
तुम एक बार फिर आना कि
मिट्टी और हवस में दबी
तुम्हारी नर्म कोमल-सी देह
तुम्हारी घुटती-चुभती साँसों का
हिसाब माँगती है
माँगती है वह तुम्हारी
सुनहरी लटों में पड़ी
विकृतियों के बेतरतीब
बंधनों की सड़ी- गली लाश
और उससे रिसता बूँद- बूँद
तुम्हारा नन्हा खून।