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ANJU SAINI(ARP)

Classics

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ANJU SAINI(ARP)

Classics

तुलसी विवाह (पौराणिक कथा)

तुलसी विवाह (पौराणिक कथा)

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नाम वृंदा था उसका, राक्षस कुल में जन्म पाई थी।

भगवान विष्णु की लेकिन, परम भक्त वो कहलायी थी।।

राक्षस कुल के दानव जालंधर ,से ब्याह रचाया था।

पत्नी बन जलंधर की, उस राक्षस का संग पाया था।।

पतिव्रता धर्म का पालन वो नित प्रति करती थी।

उसकी व्रत से ही पति में, शक्तियां भरती थीं।।

राक्षस ने चारों तरफ हा हा कार मचा रखा था।

इस अत्याचार से देवताओं को भी न बख्शा था।।

देवता होकर परेशान , विष्णु के पास जाते हैं।

राक्षस के अत्याचार का, हाल सब सुनाते हैं।।

प्रार्थना देवों की सुन विष्णु जी कुपित होते हैं।

वृन्दा की पतिव्रता भंग करने का निश्चय करते हैं।।

विष्णु जालंधर का रूप धर वृन्दा के महल जाते हैं।

बैठी पूजा में देख वृंदा को, मुस्कराते हैं।।

पति को आता देख, वृंदा पूजा से उठ जाती है।

विष्णु को ही पति समझ चरणों को छू लेती है।।

जैसे ही सतीत्व वृंदा का भंग होता है।

युद्ध कर रहे जालंधर का सिर, आंगन में कट गिरता है।।

कटा सिर देख पति का, वह संशय में पड़ जाती है।

छल विष्णु का समझ, आहत वो हो जाती है।

श्राप विष्णु को दिया, पत्थर के हो जाओ तुम।

तुमने हृदयाघात किया, और न अब तड़पाओ तुम।।

विष्णु पत्थर के देख, लक्ष्मी जी रोने लगती हैं।

कर जोड़ करूण प्रार्थना, वो वृंदा से करने लगती हैं।।

लक्ष्मी जी की अरज पर, विष्णु को श्राप से मुक्त किया।

पति का कटा सिर लेकर अपने को उन्होंने सती किया।।

वृंदा की राख से, एक पौधे ने जन्म लिया।

विष्णु जी ने उस पौधे को तुलसी नाम दिया।।

अपने पत्थर रुप को सालिग्राम बनाया।

कार्तिक मास में फिर तुलसी से उसका विवाह करवाया।।

      


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