अहंकार
अहंकार
अहंकार न कभी खुद को जीता है
ना किसीसे हारा है
जीत जीत का जश्न मनाते
खुद को भूल जाता है
ये अहंकार न कभी झुकता है
न किसीसे याचना करे
खुद का शिर लेकर ही
बस खुदको ही देखता है
क्या रहगया है शेष
जो जितना चाहो बार बार
सामने सिर्फ लाशों की ढेर
क्या तुम कभी झुकते हो ?
एक शर तुम्हारा
जो झुक नहीं सकता
क्या कोई तुम्हारे आगे झुका है
प्यार भरी आँखों से निहारा है ।
किसने सिखाया तुझे
झुकना है बुरा
लाखों शर का ढेर मैं
कोनसी सुख तलास है तुझे ।
प्यार से ही पैदा हुआ
प्यार न सीखा कभी
नफरत की आग मैं
खुद जला ओर जला डाला
