इंसानियत
इंसानियत
प्यार किसी जिस्म से नहीं
एक इंसान से ही सही
ईमान से ही सही
इश्वर से ही सही ।
अगर उसमे दिल ही नहीं ,
तो ये लाशों की ढेर क्यों ?
सच न मिले , झूट समेटना क्यों
प्यार न मिले तो नफरत क्यों ।
एक दिल मैं इम्सनियत ही सही
बाकी लाशों की ढेर क्यों?
प्यार है तो जिंदा दिल से
लाशों की गंध सहना क्यों ?
