पुरानी किताबों की खुशबू
पुरानी किताबों की खुशबू
पुरानी किताबों की खुशबू, एक जादू सा बिखेरे,
हर पन्ना कुछ कहे, जैसे वक्त को धीरे-धीरे घेरे।
उनमें दबी कुछ सूखी पंखुड़ियाँ, और कुछ भूली चिट्ठियाँ,
हर मोड़ पर बसी है, बीते कल की कितनी सच्चियाँ।
मां की उँगलियों की छाप, पापा की सिखाई बात,
भाई की शरारतें, बहन की मुस्कान की सौगात।
कभी कॉपी में लिखे खत, कभी मार्जिन में कुछ ख्वाब,
किताबें नहीं बस किताबें, ये तो दिल के बहुत पास हैं जनाब।
कभी खोलो तो बचपन हँस दे, कभी आंखों में नमी सी लाए,
पुरानी किताबों की खुशबू, कुछ तो है जो आज भी रुलाए।
✍️ Ink•Imagination
