होस्टल की चार दीवारी
होस्टल की चार दीवारी
चार दीवारों में बंधी ये ज़िन्दगी,
पर दिल अब भी अपने घर में कहीं।
हर सवाल का जवाब है मेरे पास,
फिर भी खामोशी का पहरा हर साँस।
सब कहते हैं, बाहर रहना आसान है,
पर ये तन्हाई ही सबसे बड़ा इम्तिहान है।
बुखार में जलो, या दर्द से कराहो,
कोई माथा छूने वाला भी कहाँ राहों?
घर से फोन आए, तो हँस के बताना,
"सब बढ़िया है", बस यही दोहराना।
माँ के हाथ का खाना बस यादों में रह गया,
दाल-रोटी भी अब खुद से बनाना पड़ गया।
पढ़ाई का बोझ, घर की उम्मीदें,
खुद से लड़ना, और खुद ही जीतें।
पर फिर भी दुनिया कहती है यही,
"अभी तक कुछ किया नहीं सही?"
ये होस्टल लाइफ भी कितनी अजीब है,
हर खुशी में भी बस तन्हाई करीब है।
पर यही तन्हाई हमें मज़बूत बनाएगी,
कल जब जीतेंगे, दुनिया झुक जाएगी।
