दिल की कुछ तलब ही ऐसी है
दिल की कुछ तलब ही ऐसी है
बिछड़ के भी, उससे दूर ना हो सके हम,
दिल की तलब ही कुछ ऐसी है,
यादों के साये में, जीते हैं हर दम,
दूरियाँ हैं, पर ये प्यार कोई कर सके ना कम ।
आँखों में उसकी छवि, दिल में उसकी याद,
हर साँस में उसकी, होती है फरियाद।
चाहते हैं मिलना, पर दूर है वो,
तड़पते हैं हम, पर दिल में उन्हीं की तलब है
दर्द-ए-जुदाई का, गहरा है ग़म,
साथ रहने की, हर पल तमन्ना में हम।
मजबूर हैं हम, किस्मत के आगे,
बिछड़ के भी, उससे दूर ना हो सके हम।
दिल की कुछ तलब ही ऐसी है जनाब

