ग़ज़ल: ज़रूरी है
ग़ज़ल: ज़रूरी है
मैं नहीं जानता कि क्या सामान ज़रूरी है,
चेहरा ज़रूरी है कि मुस्कान ज़रूरी है।
वो कहता है कि पैदा करना एहसान नहीं है,
तू कहता रह, बस इतना सा एहसान ज़रूरी है।
घर बना था मगर रौशनी गुम थी कहीं,
खिड़कियाँ हैं पर इक निगहबान ज़रूरी है।
छोड़ के जाना मुश्किलों में कुछ नया तो नहीं,
रिश्तों में पर इक नया इमान ज़रूरी है।
शिकवे हैं बहुत से मगर ए दोस्त सुन ले,
मुझको शिकवे नहीं इनसान ज़रूरी है।
