शिक्षक की कलम से
शिक्षक की कलम से
हां!मैं उन *बीजों* से अपनी बगिया सजाती हूं,
जिन्हे नहीं मिली उपजाऊ मिट्टी और ना वह पर्यावरण।।
सभी बीजों को पोषित करती हूं,और देती हूं स्वच्छ वातावरण ।।
वे नन्हे बीज ,नहीं थी जिनकी कोई उम्मीद कि वे पौधे भी बनेंगे?
मै डालती हूं उम्मीदों की खाद,और निहारती हूं दिनभर उन्हें,
फिर अचानक! उनमें आती है सजीवता होता है "अंकुरण"
और मैं खुश हो जाती हूं ,अपनी नन्ही क्यारियों को देखकर
वे नन्हे पौधे विभिन्न रंगों और रूपों में स्फूर्तिमान होते है
कुछ पौधे तो खड़े होते है स्वत:,परंतु कुछ को देना पड़ता है संबल।।
सुबह जब पहुंचती हूं अपनी बगिया में, वे मुझे निहारते हुए मस्ती में झूम उठते हैं।।
नन्हा पौधा धीरे धीरे परिलक्षित होता है परिपक्व होने को,
निकलती हैं नन्ही कोपलें, प्रस्फुटित होती है कलियां और आने को आतुर हैं फल।।
नन्हा पौधा जब बनता है फलदार वृक्ष,देता है समाज को,
प्रेमरूपी छाया,जीवन दायनी हवा,और पोषित करने को फल
अनेक रूपों में करता है वह समाज का उद्धार,और देता है अपने देश को एक सुदृढ नींव।।
हां मैं उन बीजों से अपनी बगिया सजाती हूं,जिन्हे नहीं मिली उपजाऊ मिट्टी और ना वो पर्यावरण।।