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Arti jha

Classics

4.5  

Arti jha

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समय का चक्र

समय का चक्र

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कही पड़ा है सूखा जग में,कहीं बहुत है पानी।
हे विधि!कैसे रचते हो तुम अदभुत अमिट कहानी।।

कहीं अधिकता है जीवन की,कहीं अल्प जीवन है।
जन्म कर्म के बीच फंसा ये ,जन्मों का बंधन है।
हमें निभाना धर्म यहां है ,जबतक दाना पानी।
हे विधि........

कही दुष्ट अन्याई पापी,पा लेते हैं प्रभुता।
कहीं चोट पग पग पर खाए,मनुजों की सहिष्णुता।
विधि के हाथों कोई विवश है,कोई करे मनमानी।
हे विधि................

जीवन के सब पाप भुला दे,दौलत रुपया पैसा।
किन्तु बना दे कही अकिंचन,को अपराधी जैसा।।
मंद मंद मुस्काए ईश्वर, देख ये खींचातानी।
हे विधि.............

कहीं राम की धुन पर करते, मुनिजन ताता थैया।
कहीं मनोहर पार लगाते,जीवन रुपी नैया।
कहीं इष्ट देवी बन जाती, अपनी राधा रानी।
हे विधि............
 
आरती


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