शर्त साजिश छल.....
शर्त साजिश छल.....
शर्त, साजिश, छल कपट ये प्यार है क्या।
मान लूंँ हर बात, वो सरकार है क्या।।
तल्खियाँ कोई भला कब तक सहे यूँ
आदमी है, राम का अवतार है क्या।।
क्यों बताऊँ, दरमिया क्या-क्या हुआ है,
जिंदगी मेरी, खुला अखबार है क्या।।
दे दिया है सब, तुम्हें जो चाहिए था।
सच बताना, ये हमारी हार है क्या।।
सोच लो तुम, अब तुम्हें आना पड़ेगा,
हर दफा मैं ही बढूँ, खिलवाड़ है क्या।।
ये नहीं है, वो नहीं है, सब बहाने,
हो लगन तो, मुफलिसी दीवार है क्या।
