तुझसे क्या डरना ऐ मौत
तुझसे क्या डरना ऐ मौत
तुझसे क्या डरना, ऐ मौत!
तुझसे क्यों डरना, ऐ मौत!
जब दुनिया में आई, रोई ज़रूर
नई यह दुनिया, नये यह लोग, नया माहौल
नया परिचय, नया अहसास ज़िंदगी का
मौत से कोसों दूर, मौत से अनजान
मौत के डर से थी बिल्कुल अनजान
नहीं था उससे दूर दूर तक कोई वास्ता
साथ थे अपने, छिड़कते मुझपर जान
बेइंतहा -आने न देते मेरी आंखों में आंसू
मगर कोशिशें ऐसी सदा रहती हैं नाकाम
चाह कर भी रोक न सके डर का प्रवेश
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, बना ली जगह मौत की
तस्वीर ने, उसके ख्यालों ने ,और डर ने
खिंच गई मानस पटल पर मौत की तस्वीर
देखा मृत शरीर को, चुप्पी साधे आंखें मूंदे ,
सफ़ेद चादर में लिपटे, फूल मालाओं के ढेर
चारों ओर रोते बिलखते लोग, कुछ गंभीर
मेरी समझ में क्या आती वह सारी बातें
न शोर समझ में आता, न ही सन्नाटा
मगर शोक और रुदन का चेहरा छा गया
मेरे मन के कोने कोने में, बन डर का मुखौटा
शोकाकुल चेहरों को देख हो जाती मैं खिन्न
रोती कभी तो कभी कभी हो जाती गुमसुम
मौत की तस्वीर जो हो गई अंकित ,छोड़ गई
अपनी छाप मेरे सहमे हुए दिलो दिमाग़ पर
पर धीरे -धीरे होने लगा परिपक्व मन को
यह अहसास , कि है यह डर बेबुनियाद,
अस्तित्व विहीन--है जगह इसकी उतनी ही
जितना हम देना चाहें--रत्ती भर न उससे ज़्यादा
जन्म मरण का किस्सा तो लगा रहेगा अनंत
है विधि का विधान यही, सृष्टि का यही उसूल
पाई है मैंने खुशी खुशी जब जीवन की सौगात
बाहें पसार किया है जब उसका स्वागत
उसी तत्परता से कर पाऊं स्वागत मौत का
समझूं उसको भी ज़िन्दगी की सौगात
पाया जितना जीवन से, उसकी शुक्रगुज़ार
न मौत का डर न ही उसका इंतजार
आएगी जब आएगी चल दूंगी उसके साथ
न डर न खौफ़ , न शिकवा न शिकायत
चल दूंगी बांहों में उसकी बांहें डाल
ले जाएगी जो मुझे मेरी मंज़िल की ओर
'जो होगा वह अच्छा ही होगा '
रहा अगर यही ज़िंदगी का सदा सबब
तो क्यों न हो यही मौत का भी सबब
डर को दे दूं, तिलांजलि ,मौत को लगा लूं गले
जान सकूं गर मैं यह सच, कि ज़िंदगी ही नहीं
मौत भी है हमारी दोस्ती की हक़दार।।