तुझसे दूर ले चला है.
तुझसे दूर ले चला है.
तुझसे दूर ले चला है वक्त का काफ़िला अब,
फिर तेरी गली से गुज़रे,देखे! कौन घड़ी आये।
मुश्किल है क्या बताये, जिसे वो समझ ही पाए,
ज़रूरी तो नही है कि हर बात कही जाए।।
तरकश में तेरे तीर ही तीर भरे हो जब,
फ़ायदा क्या है कि फिर ज़ख्मों को सिया जाए।
इंसा के बस में होता तो मुहब्बत ही यहाँ होती,
भला कौन सोचता है ये कि नफरत में जिया जाए।
साजिशों का दौर हो जब,किसी का फिर क्या ठिकाना,
जीवन जल जिसे समझें, वो रेत निकल आए।
उसे दोष दिया हमने, इंसान समझ कर के,
अब निकला ख़ुदा वो तो, क्या दोष दिया जाए।।