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तुझे क्या लिखूँ

तुझे क्या लिखूँ

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तुझे सुबह लिखूँ या शाम लिखूँ,

खुद का होश या उसका ज़ाम लिखूँ,

अपनी राहत या उसका आवाम लिखूँ,

सोचता हूँ अब महज उसका नाम लिखूँ।


बता अपनी मौत लिखूँ या तेरा कत्लेआम लिखूँ,

समझ नहीं आता इश्क़ लिखूँ या उसका इल्ज़ाम लिखूँ,

चलो अब पहला ख़त और आखिरी पैगाम लिखूँ,

सोचता हूँ अब महज उसका नाम लिखूँ।


कि अब तुझे बाहों में लिखूँ या सरेआम लिखूँ,

आजाद परिंदा लिखूँ या ख़ुद का गुलाम लिखूँ,

कि बड़ी कशमकश है ख़ुद का थकान या,

उसका आराम लिखूँ।


सोचता हूँ अब महज उसका नाम लिखूँ,

कि अब तुझे नज्म लिखूँ या कोई कलाम लिखूँ,

बता तेरा ग़म लिखूँ या अपने ग़म तेरे नाम लिखूँ,

महफिलों का आदाब लिखूँ या उसका आखिरी सलाम लिखूँ।


सोचता हूँ अब महज उसका नाम लिखूँ,

कि यूँ कब तलक लिखूँ तुझे, कभी तो अपना काम लिखूँ,

जब लिखना है ‘महज’ तो क्यूँ न ‘अपना’ नाम लिखूँ,

तुम्हें आना है तो आओ शौक से,तुझे आदाब और सलाम लिखूँ,

अब सोचता हूँ कि सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘अपना’ नाम लिखूँ।


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