तुझ पर मन तनी गहराई है
तुझ पर मन तनी गहराई है
यह कविता जो मैं पिछले साल गर्मी में प्रत्यक्ष अनुभव है, जो मेरे जीवन को बदल दिया, तथा खुशी को परिभाषित कर सका पेश है---
जब मस्त हो बहार आती है
श्रृंगार कर प्रकृति इठलाती हैI
सुस्वर श्रवण घनी अमराई है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
मेघ गर्जन सर सर स्वर है
धरा अम्बर सब दर तर है I
अपलक नयन मन भर आई है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
नदी ताल जल प्रवाह पल पल
अटूट नाद संगीत मय जल
नीर संग खग चहक आई है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
सुना उदर चुभती धूप है
थिरकते पांव उल्लासित रूप है
जीवन का क्षण आनन्द समायी है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
कोई तुझे जाने वहां नहीं विराम है
देखें तुझे कहाँ तू नयनाभिराम है
तेरी छवि कण कण में बन आई है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
खुशियाँ ढूंढता भागा फिरता था
दूसरों को देख सीना चीरता था
आज सच जान मन हर्षायी है
तुझ पर मन तनी गहराई है I
मन बावरा देख प्रकृति को
कैसे खुश है उस मति को
आनन्द ताल भर लबलबाई है
तुझ पर मन तनी गहराई है I