ट्रेन का सफर
ट्रेन का सफर


दो लफ्जों का सफर कभी इधर कभी उधर,
अंततः हम ट्रेन व टिकट बनें हमसफर।
इंतजार किसी को पाने की,
किसी अपनों से दूर जाने की।
हर लम्हा खुशहाल हो,
दिल को मनाने की।
दो लफ्ज़ों के रास्ते,
दिल को बहलाने की।
दो लफ्जों का सफर
कभी इधर कभी उधर...
आंखें मिचोलके, नजरें तरासती
ना जाने किस नदी, किस कमल,
किस पंछी की प्यास थी।
होती है इच्छा, बीत जाए ये कारवा।
बड़ी तकलीफ होती है,
किसी के पास व किसी से दूर जाने की।