टंकार
टंकार
उठाओ धनुष करो टंकार
चलाओ बाण करो संहार
पापी मचा रहे हाहाकार
हर और फैल रहा विकार
तुम्हारी चुप्पी को है धिक्कार
बढ़ता जाएगा व्याभिचार
धर्म ध्वज लहराओ अर्जुन
उठाओ गांडीव कर दो नर पिशाचों का भंग अहंकार
चलाओ बाण करो संहार
आंख मूंदने से, मौन ओढ़ने से अधरमियों का बढ़ेगा मनोबल
सत्य को वनवास और नारी हरण
करते रहेंगे ये दुष्ट, खल
कितना भी विशाल हो पापियों का बल
भरें हो इनमें कितने भी दाव पेंच और छल
एक हल्की सी आँधी सत्य की फैला देगी जब अपनी झंकार
फिर तुम वीर, तुम्हारे बाणों की टंकार
लगाओ सत्य की एक हुंकार
कुचल डालो विषैले फनों को
कर दो इनका संहार.
धर्म की पुकार, मानवता पर करो उपकार
न्याय की स्थापना, राम राज्य का स्वप्न करो साकार
पाप को मिटाना पाप नहीं
पाप को देख चुप रहना है पाप
हे अर्जुन मत करो विचार
उठाओ धनुष, चलाओ बाण
धर्म की स्थापना हेतु करो दुष्टों का संहार
मिटे विषय वासनाएं नव चेतना की हो झंकार।
