ठंड के सात रंग
ठंड के सात रंग
एक
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सहमी
शरमाई सी
दिनभर खड़ी रही
धूप
ठंड
दुबककर रजाई में
शाम से पी रही
टमाटर का सूप--
दो
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सुबह
कोहरे के संग
उतर रही
ठंड
सूरज के टूट रहे
सारे अनुबंध--
तीन
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ठिठुरते समय में
दौड़ रही घड़ी
अदरक की चाय
अंगीठी पर चढ़ी--
चार
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आलिंगन को आतुर
बर्फीली रातें
गर्माते होंठ
कर रहे
जीवन की बातें--
पाँच
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ना जाने की जिद पर
कँपकँपाती
ठंड
दरवाजे पर अड़ी
खटिया खड़ी---
छह
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बेघरों की
ठंड
करती हैं
अलाव से बातें
भूखे पेट जैसे
कटती हैं रातें--
सात
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गरीब मजदूरों के
नसीब में नहीं है
न अदरक की चाय
न जीवन की चाह--