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चिड़िया

चिड़िया

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फुदक-फुदक
आँगन में आकर
सामूहिक चहचहाती
अन्नपूर्णा का भजन सुनाती
दाना चुगती
फुर्र हो जाती,

धूप चटकती तब
तिनके-तिनके जोड़-जोड़ कर
घर के कोने में
घोंसला बनाती
जन्मती
नन्ही चहचहाहट
देखकर आईने में
चोंच मारती
थक जाती तो
फुर्र हो जाती,

समझ गयी जब से तुम
आँगन-आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
फुदक-फुदक कर
अब नहीं आती
टुकुर-टुकुर बस देखा करती
फुर्र हो जाती,

एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ...


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