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Vijaykant Verma

Comedy

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Vijaykant Verma

Comedy

होली का रंग

होली का रंग

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होली का पर्व था

पिचकारी में रंग था

मैंने दे मारा पिचकारी

और गलती से वो रंग

पड़ गया सामने से गुजरती

एक लड़की प....


पहले तो वो गुस्साई

फिर जूती से जुतियाई

मैं गिड़गिड़ाया

उससे माफी मांगा

तब होले से वो मुस्कुराई

मुझ पर रहम खाई

दवा कराई

और खुद बीमार पड़ गई..!


फिर कहने लगी

मेरी दवा तो तुम हो

मेरा इलाज भी तुम हो

मेरा प्यार भी तुम हो

मेरा संसार भी तुम हो

उसकी इन बातों को सुन 

मैं रह गया दंग

मोहब्बत का उसे बुखार था

प्यार का चढ़ा था रंग


फिर बात आगे बढ़ी

कुछ इस तरह बड़ी

जो लड़की गुस्सा करे

फिर रहम भी खाए

वो लड़की बुरी नहीं है

जो लड़की जूती से ज़ुतियाये


फिर दवा इलाज भी कराए

वो लड़की बुरी नहीं

जो लड़की गलती करें

फिर माफी भी मांग ले

वो लड़की बुरी नहीं है


जो लड़की लड़ाई लड़े

फिर माफी भी मांग ले

वो लड़की बुरी नहीं

यह बात मैंने नहीं

मेरी मम्मी ने कही..!


अब लड़की घर पर है

बहू की तरह नहीं

बेटी की तरह है

घर स्वर्ग जैसा है

हम खुश हैं

वो खुश है

पिताजी खुश हैं

और मैं भी खुश है..!


लेकिन जब कभी मैं

होली को याद करता हूँ

उस घटना को याद करता हूँ

वो गुस्सा हो जाती है

फिर मुस्कुरा कर कहती है


ऐसी होली फिर कभी न आए

क्यूंकि मैं डरती हूं

कहीं ऐसा ना हो

तू मेरी सौतन ले आए..!


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