कवि
कवि
हर कोई है चाह में, बनूँ कुमार विश्वास
मैं भी निकला राह में, रचना लेकर खास
लोग पढ़े या न पढ़े, मैं रचते जाऊँ छंद
मेरे मन ने मान लिया, खुद को ही जयचंद
किस्मत से मिल ही गया, कवि सम्मेलन एक
मैं जब पहुँचा मंच पर, कवि थे वहाँ अनेक
दो कवियों के बाद ही, बारी अपनी आई
संचालक ने कान में, बात एक दोहराई
बोले मुश्किल से मिला, ये दर्शक भाग न जाऐ
मुक्तक छोटा ही पढना, अभी चार नहीं पढ़ पाऐ
मैंने भी विश्वास में, "डॉन्ट वरी" कह डाला
पर धीरे से बोल दिया, ये अनुभव मेरा पहला।