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Kumar Naveen

Others

5.0  

Kumar Naveen

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फ़ख्र से कहता हूँ मैं

फ़ख्र से कहता हूँ मैं

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ऐ खुदा बख्शी जो तुमने,

मेरी किफ़ायत ज़िन्दगी ।

सजदे में ये सिर झुका,

और बार-बार है बन्दगी ।।

तेरी नेमत, मेरी खिदमत,

असर मैं एक नसीब हूँ ।

फ़ख्र से कहता हूँ मैं,

कि मैं एक ग़रीब हूँ ।।


अता की तेरी दुनिया ने,

मुझे बस दर्द और नफरत ।

मगर मैं मुस्कुराता सा,

क़ुबूला अपनी ये किस्मत ।।

अबद से इन अमीरों का,

बस मैं एक रक़ीब हूँ ।

फ़ख्र से कहता हूँ मैं,

कि मैं एक ग़रीब हूँ ।।


मुझे बस नाज़ है अपनी,

मेहनत की कमाई पर ।

भले ना हो महल मेरी,

पर खुश हूँ इस रुसवाई पर।।

अपनी कल की किस्मत का,

खुद मैं कातिब हूँ ।।

फ़ख्र से कहता हूँ मैं,

कि मैं एक ग़रीब हूँ ।।


परिवार के दायित्व में,

कुर्बान सब कुछ मानता ।

इस जहाँ में मैं ही तो,

रिश्तों को निभाना जानता ।।

फुटपाथ पर पला-बढ़ा,

मैं बस एक जाज़िब हूँ ।

फ़ख्र से कहता हूँ मैं,

कि मैं एक ग़रीब हूँ ।।


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