ये सावन भी सितम ढाया
ये सावन भी सितम ढाया
घटाएँ घिरी है काली-काली,
मौसम भी आशिकाना है।
चले आओ कहाँ हो तुम,
ये मेरा दिल दीवाना है।।
ठहर जा ऐ घिरे बादल,
सजन बस आने वाले हैं।
बारिश में संग-संग झूमें,
ख़्वाब भी बड़े निराले हैं।।
यादें रुला रही मुझको,
धड़कन में बसे हो तुम।
कहीं ये रूठ ना जाए,
संभाले संग हम और तुम ।।
ये सावन भी सितम ढाया,
तुमसे पहले ही ये आया।
मेरा मन बार-बार तुमसे,
बस ख्वाबों में ही मिल पाया ।।