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Jyoti Khare

Romance

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Jyoti Khare

Romance

प्रेम

प्रेम

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धूप में

कुछ देर

मेरे पास भी बैठ लो

पहले जैसे


जब खनकती चूड़ियों में

समाया रहता था इंद्रधनुष

मौन हो जाती थी पायल

और तुम

अपनी हथेली में

मेरी हथेली को रख

बोने लगती थी

प्रेम के बीज


धूप में

अब जब भी बैठती हो मेरे पास

छीलती हो मटर

तोड़ती हो मैथी की भाजी

या किसती हो गाजर


मौजूदा जीवन में

खुरदुरा हो गया है

तुम्हारा प्रेम

और मेरे प्रेम में लग गयी है

फफूंद


सुनो

अपनी अपनी स्मृतियों को

बांह में भरकर

रजाई ओढ़कर सोते हैं

शायद

बोया हुआ प्रेम का बीज

सुबह अंकुरित मिले


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