तप्त उर की वेदना
तप्त उर की वेदना
तप्त उर की वेदना ने मौन स्वर में यह पुकारा
पास आ जाओ जरा तुम, तुम बिना न है गुजारा
प्रेम के तुम हो पुरोधा मेरे दिल के हो पुजारी
सांसो को चलने सदा चाहिये सदा तेरा सहारा
गीत गजलो में कही पे जब अटक जाता प्रिये
दिग्भ्रमित भावो का बनती एक तुम ही हो किनारा
कह रही पीपल की डाली कोकिला की कूंक प्यारी
आँखों मे सांसो में धड़कन में बसा चेहरा तुम्हारा
सुष्क है जीवन हमारा और पतझड़ ज़िंदगी
राह तकते दृग हुये है मानो निर्झर सा हमारा
जिस्म भी क्या, सांसे भी क्या, रूह ही है ये तुम्हारी
तुम चाँद ही जब पास न हो क्या करूँगा मैं सितारा
गीत गाकर जब पुकारूँ तुम कहोगी है ये आदत
अब भला चाहत जताने क्या प्रिये दूं मैं इशारा
चाह में अम्बर जमीन को झूम कर छूने लगे
इससे बढ़के इस जगत में कुछ भी न होगा नजारा
तुम ऋषभ की वो तुम्हारा जग भला समझेगा कैसे
पास आओ तुम जरा ये इसलिए मैंने उचारा