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Indu Tiwarii

Romance

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Indu Tiwarii

Romance

तन्हाई

तन्हाई

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जब भी मैं अकेली होती हूँ,

अक्सर कर सामने वाली

कुर्सी पर नज़र जाती है

क्योंकि कोई भी कहीं बैठे


तुम्हारी जगह वही होती है

निहारती रहती हूँ

तन्हाइयों में तुम्हें,

पर जैसे ही मेरी

नज़र तुम्हारी शरारत

भरी नज़र से टकराती है,

बिन कुछ बोले ही 

मैं शरमा जाती हूँ


अभी आज तुम मेरे

पास नही हो,

लेकिन तुम्हारा एहसास

फिर भी मुझे तुम्हारे प्यार में, 

हिचकोले भरवा रहा है


नज़र शरमा रही है

'मन' मिलने को बेताब है

यही दिल की चाहत है।


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