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अधिवक्ता संजीव मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव मिश्रा

Tragedy

तन्हा यादों के साये में

तन्हा यादों के साये में

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तन्हा यादों के साये में ,

अक्सर दर्द लिखता रहा,

गमों की स्याही में जिंदगी को,

कलम समझकर डुबाता रहा।

यह अलग बात है कि ,

वो कभी न समझे अल्फाज,

हासिल न हुये वो करके खुदको बर्बाद,

हरदम दिल धड़कता रहा उनके लिये,

उनके प्यार पे सजदा करके हुये बर्बाद।

समझ न पाया कभी दूरियों से आई दूरियां,

जिंदगी बस मजाक बन गई होके वीरान,

नहीं अब जान गया पहचान गया इंसान,

जिंदगी में फरेब ए वफा का जान गया ईमान।

होती नहीं कभी सच्ची मोहब्बत की कद्र,

मिलती जिंदगी को बेवफा मोहब्बत में कब्र,

मत कर किसी से प्यार दिलों में बेवफाई है,

बेवफा के दिल में होती नहीं वफा ए नज्म।



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