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Sana K S

Tragedy

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Sana K S

Tragedy

तलब कैसी...

तलब कैसी...

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मेरी आवारगी की अब तलब कैसी,

जिसके गले से ना लगू .. वो अब मुहब्बत कैसी...

बड़ी दुआओं में माँगा था तुझे ये संगदिल सनम,

अब कोई अरमान पूरे ही ना हो .. ये मेरी फरीयाद कैसी...

तड़पता हुआ रेत रेगिस्तान का आँखों में भरकर,

एक बूँद आसुंओ को तरसे अब वो बारीश कैसी...

चंद लम्हों की मुलाकात तेरे दीदार को तरसे,

अब कोई भी ख्वाहीश जी सके वो झलक हैं कैसी...

लौट आये या आये तू ..दरवाजे पर ये दस्तक कैसी...

मत कर मेरी उम्मीद ..मैं अब तेरा ना हो सका...

वो गुलिस्तान था जो तेरी यादों से भरा...

उन्हें ना दफना सकूँ तो ..अब ये कब्रिस्तान की गलियाँ कैसी......



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