तकलीफ़
तकलीफ़
स्त्रियाँ अपनी तकलीफ़ें
किसी को नहीं बतातीं
सहती जाती है
ढोतीं जाती है
जब तक सीमाएँ
न हो जाये पार
तकलीफ़ न बढ़
जाये अपार
अदभुत है
सहने की सीमा
जैसे लक्ष्मण रेखा
जब तक कोई
रावण रूपी असुर
नहीं आ जाता
रेखा को नहीं
लांघा जाता
सीमा को नहीं
तोड़ा जाता
अद्भुत है
सहने की सीमा
क्यों सहतीं है
क्यों डरतीं है
क्यों दर्द को
अपना साथी
बना लेती है
क्यों द्रोपदी सीता
उर्मिला यशोधरा
बन जाती है
क्या पाती है
क्यों खोती है
स्त्रियाँ अपनी तकलीफ़
किसी को नहीं
बताती है।