तिलांजलि
तिलांजलि
जिस दुनिया को हमनें, हमेशा अपना जाना
दे दी तिलांजलि उसे जब वो अपना नहीं मानी..!
कर दिये हम श्राद्ध उसके खयालों का
जब वो मेरे किसी काम की नहीं थी।
हर वसूल को तोडा मैनें जिसके लिए
इंतज़ार उसे मेरे श्राद्ध की पूड़ी का है।
नही आती याद अब उसकी, दिल नें भुलाया उसे
छोड़कर सब मन तिलांजलि दे बैठा उसे..!
