क़लम तू लिखती जा..
क़लम तू लिखती जा..
क़लम तू लिखती जा
कुछ तो लोग कहेंगे
काम है उनका कहना..
नहीं लिखोगे तो कैसे बढ़ोगे
तुझे शिखर पर जो है पहुँचना..!
बात को मेरी मान सुलोचना
जीवन का आधार आलोचना
होगा जिससे बेड़ा पार
क़लम तू लिखती जा..
गर कहना उनकी फितरत है
तुझे इसमें बड़ी क्या हैरत है
बिना कहे कोई जागा कब है
पड़े रहे से दुःख भागा कब है
सुनकर सबकी बात चलो तुम
संगी कहे कुछ यार..
क़लम तू लिखती जा..!
तेरे हितैषी तेरे समर्थक
एक दिन होंगे असंख्य हजार
मंज़िल को कर मुट्ठी में तू
भव को इस कर ले पार..
क़लम तू लिखती जा..!