तहो के बीच
तहो के बीच
आज पुरानी अलमारी में मिल गया तुम्हारा खत पुराने लिफाफे में/ये गुलाबी लिफाफा जिसमे से आ रही हैं अभी भी संदल की महक/हाथ में उसे लेकर मै खड़ीहूँ शांत,चुपचाप, अडोल/दिल में उठ रहा है एक तूफान/ख्यालों के सितारे एक साथ झिलमिला उठे है/याद आ गया वो आंगन,नीम का पेड़ और तुम्हारे घर की सकरी सी गली/जहां सारी- सारी दोपहर हम एक दूसरे को चोरी चोरी देखा करते थे/मै बहाने बहाने से आंगन में निकला करती थी/मुझे आज भी तुम्हारे घर का वो झरोखा याद है जो मेरे आंगन में खुला करता था/जिसमें से तुमने मुझे दिया था वो पहला खत बंद लिफाफे में/दिल धड़क उठा था/माथे पे आ गई पसीने की बूंदों को मैने झ्ट से चुन्नी से पोछा और जल्दी से छिपा लिया था वो गुलाबी लिफाफा/आज फिर वो मेरे हाथ में है और तुम दिल और ज़हन में/दिल ने चाहा काश फिर तू एक बार मिले/पर मै किसी की अमानत थी/काश ये मज़हबी दीवार हमारे दरम्यान न होती/मैने चोर नज़रों से अपने आस पास देखा/और अपने ख्यालों को झटक लिफाफे को माथे से लगा/ रख दिया फिर पुरानी साड़ी की तहों के बीच ।
